Issue of Debentures meaning in Hindi
ऋणपत्र का अर्थ ( Meaning of Debenture ) : अंश निर्गमन से पूँजी प्राप्त करने के अतिरिक्त , एक कम्पनी जिसे दीर्घकाल के लिए धन की आवश्यकता है , ऋणपत्र निर्गमन के माध्यम से ऋण ले सकती है । कम्पनी द्वारा निर्गमित किया गया ऋणपत्र एक सर्टीफिकेट के प्रारूप में होता है जिस पर कम्पनी की सार्वमुद्रा ( Common Seal ) अंकित होती है ।
अतः ऋणपत्र कम्पनी द्वारा लिए गए ऋण का एक लिखित प्रमाण है क्योंकि यह क है क्योंकि यह कम्पनी की सार्वमुद्रा के अधीन निर्गमित किए जाते हैं । अ ऋणपत्र में निश्चित तिथि पर मूलधन के शर्तें भी लिखी हुई होती हैं । की शर्तें और निश्चित दर से ब्याज के भुगतान की और पर VETEN ( gd ) ) भुगतान का भारतीय कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 2 ( 30 ) के अनुसार , “ ऋणपत्र में ऋणपत्र स्टॉक , बांड या कम्पनी द्वारा जारी की गई ऐसी और कोई प्रतिभूतियाँ सम्मिलित हैं , चाहे उनसे कम्पनी की सम्पत्तियों पर प्रभार उत्पन्न होता है या नहीं ।
characteristics of debentures in hindi ऋणपत्र की विशेषता
features of debentures in hindi
ऋणपत्र की विशेषताएँ ( Characteristics or features of debentures ) :
ऋण पत्र की विशेषता निम्नलिखित है –
- ऋणपत्र एक सर्टीफिकेट के रूप में निर्गमित किया जाता है जो कि कम्पनी द्वारा लिए गए ऋण का । एक लिखित प्रमाण है ।
- ऋणपत्र पर कम्पनी की सार्वमुद्रा ( Common Seal ) अंकित होती है ।
- यह मूल राशि की एक निश्चित तिथि पर वापसी का अनुबन्ध होता है ।
- कम्पनी अधिनियम 2013 के अनुसार किसी भी कम्पनी को निर्गमन की तिथि से 10 वर्ष से अधिक देय तिथि वाले ऋणपत्र निर्गमन करने की अनुमति नहीं है । परन्तु एक ऐसी कम्पनी जो इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक् • में लगी हुई है वह 10 वर्ष से अधिक परन्तु 30 वर्ष से अधिक नहीं के ऋणपत्र निर्गमन कर सकती हैं ।
- प्रायः ऋणपत्रों का निर्गमन एक निश्चित ब्याज दर पर किया जाता है जिसे कूपन दर ( Coupon Rate ) कहा जाता है । ऋणपत्र पर इसी निश्चित दर से ब्याज दिया जाता है जो इस पर अंकित होती है । ब्याज का भुगतान प्रायः छमाही रूप से एक निश्चित तिथि को किया जाता है चाहे कम्पनी लाभ अर्जित कर रही हो या नहीं । Bacopdat अनुसार
- ऋणपत्र प्रायः कम्पनी की सम्पत्तियों पर सुरक्षित होते हैं । यदि कम्पनी निर्गमन की शर्तों के . इनका भुगतान नहीं कर पाती है तो ये न्यायालय में दावा करके कम्पनी की सम्पत्तियाँ बिकवाकर अपना ऋष वसूल कर सकते हैं ।
- ऋणपत्रों के द्वारा कम्पनी द्वारा लिया गया ऋण दीर्घकालीन प्रकृति का होता है और ऋणपत्रों के धन की वापसी ( शोधन ) प्राय : एक लम्बे समय जैसे 7 वर्ष , 10 वर्ष अथवा 12 वर्ष पश्चात् की जाती है । अतः ऋणपत्रों द्वारा लिए गए ऋण को ऋण पूँजी ( Loan Capital ) भी कहा जाता है ।
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Types or kinds of Debentures in hindi (ऋणपत्रों के प्रकार)
- रक्षित अथवा बंधक ऋणपत्र ( Secured or Mortgage Debentures ) — ये वे ऋणपत्र होते हैं जिनके भुगतान के लिए या तो कम्पनी की कुछ विशेष सम्पत्तियाँ बंधक होती हैं जिसे स्थायी प्रभार ( Fixed Charge ) कहते हैं या सभी सम्पत्तियाँ बंधक के रूप में होती हैं जिसे चल प्रभार ( Floating Charge ) कहते हैं यदि इनका कम्पनी की सम्पत्तियों पर स्थायी प्रभार ( Fixed Charge ) है तो कम्पनी इन सम्पत्तियों का क्रय – विक्रय नहीं कर सकती और यदि चल प्रभार ( Floating Charge ) है तो कम्पनी इन सम्पत्तियों का क्रय – विक्रय कर सकती है । यदि देय तिथि पर कम्पनी ऋणपत्रों का भुगतान नहीं कर पाती है तो ऋणपत्रधारी बंधक रखी गई सम्पत्तियों को बेचकर अपना धन प्राप्त कर सकते हैं । जमानत की दृष्टि से ऋणपत्र प्रथम अथवा द्वितीय भी हो सकते हैं । प्रथम ऋणपत्रों को बंधक रखी गई सम्पत्तियों से अपना रुपया वसूल करने का प्रथम अधिकार होगा और द्वितीय ऋणपत्रों को बंधक रखी गई सम्पत्तियों की शेष बची हुई राशि से रुपया वसूल करने का अधिकार होगा । भारत में निर्गमित सभी ऋणपत्रों का रक्षित होना अनिवार्य
- अरक्षित ऋणपत्र ( Unsecured or Naked Debentures ) – ये वे ऋणपत्र होते हैं जिन पर ऋण की राशि अथवा ब्याज के भुगतान के लिए कम्पनी की सम्पत्तियाँ बंधक नहीं होती हैं । कम्पनी समापन पर ये ऋणपत्रधारी असुरक्षित लेनदार ही माने जाते हैं । इन ऋणपत्रों का प्रचलन अब नहीं के बराबर है । यहाँ तक कि यदि किसी ऋणपत्र पर कुछ भी स्पष्ट नहीं है तो वह रक्षित ही माना जाएगा ।
- रजिस्टर्ड ऋणपत्र ( Registered Debentures ) – इन ऋणपत्रों के धारकों का नाम कम्पनी के एक रजिस्टर में दर्ज किया जाता है जिसे “ ऋणपत्रधारियों का रजिस्टर ” कहा जाता है । यह ऋणपत्र स्वतंत्र रूप से हस्तांतरणीय नहीं होते । इनके हस्तांतरण के लिए उचित रूप से भरा गया हस्तांतरण प्रलेख ( Transfer Deed ) आवश्यक है । इन ऋणपत्रों पर ब्याज तथा मूलधन का भुगतान उन्हीं व्यक्तियों को किया जाता है जिनका नाम कम्पनी के रजिस्टर में दर्ज है ।
- वाहक ऋणपत्र ( Bearer Debentures ) – इन ऋणपत्रों के धारकों का नाम व पता कम्पनी के रजिस्टर में दर्ज नहीं होता और इन ऋणपत्रों का हस्तांतरण भी केवल मात्र सुपुर्दगी से ही हो जाता है । इन ऋणपत्रों के मूलधन तथा ब्याज का भुगतान उस व्यक्ति को किया जाता है जिसके पास यह ऋणपत्र होते हैं । वाहक ऋणपत्रों के साथ कूपन संलग्न होते हैं जिनको बैंक में प्रस्तुत करके बैंक से ब्याज की राशि प्राप्त की जा सकती है ।
- शोध्य ऋणपत्र ( Redeemable Debentures ) – इन ऋणपत्रों के मूलधन का भुगतान कम्पनी एक निश्चित समय के बाद इकट्ठा ( एक साथ ) या किश्तों में अपने जीवनकाल में ही कर देती है । अधिकांश ऋणपत्र प्राय : इसी प्रकार के होते हैं ।
- अशोध्य ऋणपत्र ( Irredeemable or Perpetual Debentures ) – इनके मूलधन का भुगतान कम्पनी के जीवनकाल में नहीं होता बल्कि कम्पनी के समापन पर ही होता है ।
- परिवर्तनशील ऋणपत्र ( Convertible Debentures ) – परिवर्तनीय ऋणपत्र वह ऋणपत्र हैं जो एक निश्चित समय के पश्चात् ऋणपत्रधारियों अथवा कम्पनी की इच्छा पर एक निश्चित दर पर समता अंशों अथवा अन्य प्रतिभूतियों में परिवर्तनीय हैं । यदि ऋणपत्र की राशि के कुछ भाग को ही अंशों परिवर्तित कराने का अधिकार है तो ऐसे ऋणपत्रों को अंशत : परिवर्तनीय ऋणपत्र ( Partly Convertible Debentures ) कहते हैं और यदि ऋणपत्र की पूरी राशि को अंशों में परिवर्तन कराने का अधिकार है तो ऐसे ऋणपत्रों को पूर्णतः परिवर्तनीय ऋणपत्र ( Fully Convertible Debentures ) कहते हैं । SEBI के दिशा निर्देशों के अनुसार यदि परिवर्तन आबंटन की तिथि के 18 माह अथवा उसके पश्चात् परन्तु 36 माह से पूर्व किया जाना है तो ऐसा आंशिक अथवा सम्पूर्ण परिवर्तन ऋणपत्रधारी की इच्छा ( Option ) पर किया जाएगा । परिवर्तनीय ऋणपत्र आजकल बहुत लोकप्रिय हैं क्योंकि ये विनियोजकों को तरलता , सुरक्षा , पूँजी वृद्धि और एक निश्चित दर से आय प्रदान करते हैं ।
Debentures बॉण्ड ( Bond ) क्या है : यह काफी सीमा तक ऋणपत्र से मिलता – जुलता होता है । पारम्परिक रूप से सरकार द्वारा बॉण्डों का निर्गमन किया जाता रहा है परन्तु आजकल ये विभिन्न अर्द्ध – सरकारी और गैर – स संगठनों द्वारा भी निर्गमित किए जाते हैं । ऋणपत्र और बॉण्ड में विशेष अन्तर ब्याज की दर के विषय में है । ऋणपत्रों का निर्गमन पूर्व निर्धारित ब्याज की दर पर किया जाता है जबकि बॉण्ड का निर्गमन बिना पूर्व निर्धारित ब्याज की दर के आधार पर किया जा सकता है जैसा कि अत्यधिक कटौती बॉण्ड ( Deep Discount Bond ) अथवा शून्य कूपन बॉण्ड ( Zero Coupon Bond ) की दशा में होता है । अत्यधिक कटौती बॉण्ड अथवा शून्य कूपन बॉण्ड ऐसा बॉण्ड होता है जिस पर ब्याज दर पूर्व निर्धारित नहीं होती । इसका निर्गमन अत्यधिक कटौती पर किया जाता है । इसके निर्गमन मूल्य और शोधन मूल्य का अन्तर ‘ कुल ब्याज ‘ होता है जिसे कि बॉण्ड की कुल अवधि में बाँट दिया जाता है । कुल ब्याज की राशि को बॉण्ड के जीवन काल की कु अवधि में प्रति वर्ष अनुपातिक रूप से लाभ – हानि विवरण में हस्तांतरित किया जाता है ।